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10 October 2014

भारतीय कैलाश सत्यार्थी को नोबल पुरुष्कार की घोषणा

कैलाश मलाला नोबल पुरुस्कार

विदिशा: मप्र विदिशा निवासी कैलाश सत्यार्थी को शांति का नोबल पुरुष्कार देने की घोषणा हुई. ये नोबल पुरुष्कार कैलाश सत्यार्थी और पाकिस्तान की मलाला यूसूफजई को संयुक्त रूप से प्रदान करने की घोषणा हुई. भोपाल गैस त्रासदी के पीडि़त बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए कैलाश सत्यार्थी को 'शांति का नोबल' मिला. श्री सत्यार्थी भोपाल गैस कांड पीडित बच्चों के लिये काफी समय से काम कर रहे थे. कैलाश सत्यार्थी का जन्म 11 जनवरी 1954 को विदिशा मे हुआ था. सम्राट अशोक तकनीकी संस्थान(एसएटीआई) से इलेक्ट्रॉनिक इन्जीनियरिंग की उपाधि ली थी. पेशे से इंजीनियर थे सत्यार्थी लेकिन 26 वर्ष की उम्र में ही अपना केरियर प्रोफेशन छोड़कर बच्चों के लिए काम करना शुरू कर दिया था. बर्तमान मे बे 'ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर'(बाल श्रम के ख़िलाफ़ वैश्विक अभियान) के अध्यक्ष हैं.

कैलाश सत्यार्थी ने नोबल मिलने पर कहा, 'इस लड़ाई में दो साथी खोए, आगे भी बलिदान को तैयार'. सत्यार्थी कहते हैं, 'यह सम्मान उन तमाम बच्चों को जाता है, जिनके लिए मैं और मेरी टीम काम कर रही है. यह उन माताओ की दुआओं का फल है, जिन्हें हमारी टीम ने बाल मजदूरी और चाइल्ड ट्रैफिकिंग से छुड़ाकर मां की गोद तक वापस पहुंचाया. यह उन बच्चों की भी जीत है, जो कड़े संघर्षों के बाद अपनी जिंदगी बदलने में जुटे हैं'. कहा कि,'मैं अकेला ही चला था जानिबे मंजिल मगर, लोग आते गये और कारवां बनता गया'. विदिशा अपने घर से शुरु हुई छोटी सी मुहिम को मेरे साथियों ने मेरा साथ देकर सारी दुनिया को इससे जोड़ दिया यह लड़ाई अभी जारी है. जब तक समाज देश और दुनिया से बाल मजदूरी, बंधुआ मजदूरी और चाइल्ड ट्रैफिकंग जैसे शब्द समाप्त न हो जाएं, तब तक हमें लड़ते रहना है संघर्ष करते रहना है. हमें इस मुहिम के क्रियान्वन मे बहुत चोंटे आईं. मानसिक, शारीरिक प्रताड़नाएं और विरोध भी सहने पड़े. यह 80,000 से ज्यादा उन बच्चों का और मेरे शहीद हुए साथी और जो इस मुहिम में अपरोक्ष और परोक्ष रूप से जुडे हैं, ये उन सबकी जीत और उन सबका सम्मान है. उन्होंने बचपन बचाओ आंदोलन को विदिशा से मध्यप्रदेश, दिल्ली तक पहुँचाया इस मुहिम से अनेक अंतरराष्ट्रीय आर्गेनाइजेशन को जोड़ा और आंदोलन को राष्ट्रव्यापी बनाया. बचपन बचाओ आंदोलन के संस्थापक कैलाश सत्यर्थी को नोबल पुरुष्कार मिलने की घोषणा से उन्हें अपनी मुहिम को आगे बढाने मे मदद मिलेंगी. जिन लोगो ने इस आंदोलन मे अपना समय दिया बलिदान दिया आज उनको काफी ख़ुशी मिली इस सम्मान की घोषणा होने पर.

श्री कैलाश सत्यार्थी नोबेल शांति पुरस्कार पाने वाले दूसरे भारतीय बन गये हैं. उन्हें 1994 में जर्मनी का 'द एयकनर इंटरनेशनल पीस अवॉर्ड', 1995 में अमरीका का 'रॉबर्ट एफ़ कैनेडी ह्यूमन राइट्स अवॉर्ड', 2007 में 'मेडल ऑफ़ इटेलियन सीनेट' और 2009 में अमरीका के 'डिफ़ेंडर्स ऑफ़ डेमोक्रेसी अवॉर्ड' सहित कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय अवॉर्ड मिल चुके हैं. पुरुस्कार की घोषणा के साथ मलाला दुनिया की सबसे कम आयु की नोबेल पुरस्कार विजेता बन गई हैं जबकि सत्यार्थी मदर टेरेसा के बाद शांति का नोबेल पुरस्कार जीतने वाले दूसरे भारतीय बन गए हैं. सत्यार्थी अपने परिवार के साथ दिल्ली मे रहते है. वही से अपने आंदोलन को संचालित करते है. श्री सत्यार्थी को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, देश विदेश के सभी राजनेतिक, सामाजिक संस्थानों उनके शुभचिंतकों, परिजनों ने उनकी इस कामयावी पर बधाई दी.

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