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10 July 2015

सुपरसोनिक मिसाइल आकाश वायुसेना में शामिल

आकाश मिसाइल वायु सेना

ग्वालियर: सुपरसोनिक आकाश मिसाइल औपचारिक रूप से आज शुक्रवार को वायुसेना के बेड़े में शामिल हुई. महाराजपुर एयरबेस पर आयोजित भव्य समारोह में रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने वायुसेना अध्यक्ष अरूप राहा को प्रतीकात्मक रूप चाबी सौंपकर मिसाइल सौपी. इस मिसाइल के लगभग 95 प्रतिशत पुर्जे भारत में ही तैयार किए गए हैं. यह जमीन से आकाश में मार करने वाली मिसाइल है. इसे रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन(डीआरडीओ), भारत इलेक्ट्रिकल लिमिटेड और निजी क्षेत्र ने मिलकर तैयार किया है. रक्षा मंत्री ने निर्माण से जुड़ीं अन्य सहयोगी कंपनियों के अथक प्रयासों के लिये धन्यवाद और शुभकामनाएं दी.

आकाश मिसाइल मॉडल

गौरतलब है कि इंडियन आर्मी के पास पहले से ही आकाश मिसाइल है, लेकिन एयरफोर्स के लिए इसमें कुछ बदलाव किए गए हैं. आज वायुसेना को भी पहली स्वदेशी सुपरसोनिक मिसाइल मिली. कार्यक्रम के दौरान सैनिकों ने मिसाइल के काम करने के तरीको की जानकारी दी. आकाश मिसाइल में राजेन्द्र रडार लगाए गए हैं जिसे बेल ने तैयार किया है. रडार 100 किमी की रेंज में एक साथ 40 टारगेट को ट्रैक कर सकता है. यह 100 किमी की दूरी से नजर रखते हुए 25 किमी के दायरे और 20 किलोमीटर की ऊंचाई तक दूश्मन के किसी भी हेलीकॉप्टर या अन्य विमान को नष्ट कर सकती है. इसकी गति ध्वनी की गति से तीन गुना ज्यादा है. यह मिसाइल एक साथ 8 लक्ष्यों को निशाना बनाने में सक्षम है. उन्हें टारगेट बना कर तबाह कर सकती है. इसे किसी भी मार्ग से कहीं भी लाया ले जाया जा सकता है. यह 720 किलो वजन वाली और 5.75 मीटर लंबी मिसाइल है.

आकाश मिसाइल चावी

रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने कहा है कि आकाश मिसाइल प्रणाली के द्वितीय चरण पर भी तेजी से काम चल रहा है. अगले दो साल के भीतर आकाश मिसाइल प्रणाली-2 भी वायुसेना के बेड़े में शामिल हो जाएगी. यह स्वदेशी मिसाइल मेक इन इंडिया की तरफ एक सफल कदम बढ़ाया है. डीआरडीओ द्वारा केवल रक्षा संबंधी तकनीक ही नहीं, बल्कि आम आदमी की भलाई के लिये भी नई-नई तकनीक ईजाद की जा रही है. हमारी मंशा है कि इस तकनीक का लाभ आम आदमी तक पहुंचे. स्वदेश में ही आकाश मिसाइल प्रणाली का निर्माण पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप का उत्कृष्ट उदाहरण है. सरकार, सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की कंपनियों की भागीदारी से बहुत कम लागत में शक्तिशाली वायु रक्षा प्रणाली का निर्माण एक अध्ययन का विषय भी है.

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