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28 September 2015

अंतरिक्ष वेधशाला एस्ट्रोसैट सफलतापूर्वक लांच

इसरो एस्ट्रोसैट सफलतापूर्वक लॉन्च

श्रीहरिकोटा(आंध्रप्रदेश): देश की पहली अंतरिक्ष वेधशाला 'एस्ट्रोसैट' का भारत ने आज सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया. पीएसएलवी-सी30 के जरिए श्रीहरिकोटा से प्रक्षेपित किया गया एस्ट्रोसैट अपने साथ छह विदेशी उपग्रह भी ले गया है, जिनमें से चार अमेरिकी, इंडोनेशिया तथा कनाडा के एक-एक उपग्रह हैं. एस्ट्रोसैट की मदद से ब्रह्मांड को समझने में मदद मिलेगी. सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से किए गए इस प्रक्षेपण में इसरो के विश्वसनीय पोलर सेटेलाइट लॉन्च व्हीकल(पीएसएलवी) की मदद ली गई. अपनी 31वीं उड़ान के तहत, पीएसएलवी ने उड़ान शुरू होने के लगभग 25 मिनट बाद एस्ट्रोसैट को 650 किलोमीटर की उंचाई पर स्थित कक्षा में स्थापित कर दिया. इसके बाद अन्य छह उपग्रहों को लगभग तीन मिनट में अंतरिक्ष में प्रवेश करवाया गया.

एस्ट्रोसैट अभियान की अवधि पांच साल की है और इसमें चार एक्सरे पेलोड, एक अल्ट्रावॉयलेट टेलीस्कोप और एक चार्ज पार्टिकल मॉनिटर है. इस उपग्रह के संचालन की पूरी अवधि के दौरान इसका प्रबंधन बेंगलूर स्थित इसरो टेलीमेट्री, ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क(आईएसटीआरएसी) अंतरिक्षयान नियंत्रण केंद्र द्वारा किया जाएगा.

देश की पहली अंतरिक्ष वेधशाला(ऑब्जर्वेटरी) 'एस्ट्रोसैट' का प्रक्षेपण सोमवार सुबह 10 बजे किया गया. पीएसएलवी सी-30 श्रीहरिकोटा से एस्ट्रोसैट को लेकर उड़ा. इसके साथ ही अंतरिक्ष में वेधशाला स्थापित करने वाला भारत चौथा देश बन गया. अब तक इस क्लब में सिर्फ चार सदस्य अमरीका, रूस, जापान और यूरोप ही हैं.

भारत ने पहली बार अमेरिकी उपग्रह प्रक्षेपित किए हैं. ये उपग्रह सन फ्रांसिस्को की एक कंपनी के हैं. इन्हें भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन(इसरो) की व्यवसायिक शाखा एंट्रिक्स कॉरपोरेशन लिमिटेड के साथ किए गए करार के तहत प्रक्षेपित किए गए हैं.

आज भारत ने तीसरी बार एक साथ सात सैटलाइट का प्रक्षेपण किया. सात उपग्रहों को ले जाने वाला यह चार स्तरीय पीएसएलवी-एक्सएल रॉकेट 44.4 मीटर लंबा और 320 टन वजनी है. एस्ट्रोसैट उपग्रह का वजन 1,513 किलोग्राम है. रॉकेट के साथ लांच किए जाने वाले सातों उपग्रहों का कुल वजन 1,631 किलोग्राम है. भारतीय एस्ट्रोसैट उपग्रह पर 180 करोड़ रुपए की लागत आयी है. एस्ट्रोसैट के निर्माण में 14 साल का समय लगा है. एस्ट्रोसैट के ऑप्टिकल मिरर का व्यास 30 सेमी है. एस्ट्रोसैट की एक खासियत यह है कि इससे ब्रह्मांड के अन्य स्रोतों पर भी एक साथ नजर रखी जा सकती है जिसमें विश्व के अन्य दूरदर्शी पिछड़ जाते हैं. इसके जरिए ब्लैक होल, तारों और तारों में होने वाले विस्फोटों का अवलोकन किया जा सकेगा.

पीएसएलवी सी30 में एस्ट्रोसैट के अलावा अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों के जो उपग्रह ले जाए गए हैं, उनमें इंडोनेशिया का एलएपीएन-ए2(स्वचालित पहचान तंत्र यानी एआईएस के तहत समुद्री निगरानी के लिए), कनाडा का समुद्री निगरानी नैनो उपग्रह एनएलएस-14(ईवी9) शामिल हैं. कनाडा का यह उपग्रह आधुनिक एआईएस का इस्तेमाल करता है.

वैज्ञानिक उपग्रह अभियान एस्ट्रोसैट में कई खास विशेषताएं हैं. जैसे कि यह एक ही उपग्रह के जरिए विभिन्न खगोलीय पिंडों से जुड़ी अलग-अलग लंबाइयों वाली तरंगों के आंकड़े जुटा सकता है. इसरो के अनुसार, एस्ट्रोसैट ब्रह्मांड का अध्ययन विद्युतचुंबकीय स्पेक्ट्रम के प्रकाशीय, पराबैंगनी और उच्च उर्जा वाली एक्सरे के क्षेत्रों में करेगा जबकि अधिकतर अन्य वैज्ञानिक उपग्रह विभिन्न लंबाई की तरंगों के एक संकीर्ण फैलाव(नैरो रेंज) का ही अध्ययन करने में सक्षम होते हैं.

एस्ट्रोसैट के वैज्ञानिक उद्देश्य न्यूट्रॉन स्टार्स और ब्लैक होल से युक्त बाइनरी स्टार सिस्टम(दो तारों का समूह) की उच्च उर्जा प्रक्रियाओं का अध्ययन करना, न्यूट्रॉन स्टार्स के चुंबकीय क्षेत्र का आकलन और तारों के जन्म क्षेत्रों एवं हमारी आकाशगंगा से परे मौजूद तारामंडलों की उच्च उर्जा प्रक्रियाओं का अध्ययन करना है. आकाश में मौजूद नए कम चमकीले एक्सरे स्रोतों की पहचान करना और पराबैंगनी क्षेत्र में ब्रह्मांड का सीमित गहरा क्षेत्रीय सर्वेक्षण करना है.

इसके साथ ही, इसरो द्वारा प्रक्षेपित किए गए वैश्विक ग्राहकों के उपग्रहों की संख्या 51 हो गई है. इन वैश्विक ग्राहकों में जर्मनी, फ्रांस, जापान, कनाडा, ब्रिटेन समेत कुल 20 देश शामिल हैं. देश की पहली अंतरिक्ष वेधशाला 'एस्ट्रोसैट' कई मायनों में अमरीकी अंतरिक्ष दूरदर्शी हब्बल का लघु संस्करण है.

एस्ट्रोसैट तैयार करने वाले संस्थानों में शामिल टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च. टीआइ एफआर ने एस्ट्रोसैट के एक उपकरण कैडिमम-जिंक-टेल्लुराइड इमेजर(सीजेडटीआई) का विकास किया है. इसरो के अलावा जो चार भारतीय संस्थान पेलोड विकास में शामिल थे, उनके नाम हैं- टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफीजिक्स, इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफीजिक्स और रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट है.

'एस्ट्रोसैट' देश का पहला बहु-तरंगदैर्ध्य वाला अंतरिक्ष निगरानी उपग्रह है, जो ब्रह्मांड के बारे में अहम जानकारियां प्रदान करेगा. यह सुदूरवर्ती खगोलीय पिंडों के अध्ययन को समर्पित है. इसरो के मुताबिक़ यह मिशन एक ही समय में अल्ट्रावायलेट, ऑप्टिकल, लो एंड हाई एनर्जी एक्स रे वेवबैंड में ब्रह्मांड की निगरानी में सक्षम है.

इस प्रक्षेपण के दौरान केंद्रीय विज्ञान एवं तकनीक राज्य मंत्री वाई एस चौधरी मौजूद थे. उन्होंने इसरो के वैज्ञानिकों को बधाई दी और कहा कि अंतरिक्ष कार्यक्रम 'हमारे मौजूदा प्रधानमंत्री की सोच एवं योजना और उनके द्वारा कल अमेरिका में कही गई बात के बिल्कुल अनुरूप' चल रहा है. इस समय पीएम अमेरिका के दौरे पर है. हमारा देश संबंधों को उपयोग में ला रहा है और उन्हें मजबूत कर रहा है. यही वजह है कि इसरो यहां से अमेरिकी उपग्रह प्रक्षेपित कर सका. सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के निदेशक कुन्ही कृष्णन ने कहा कि एस्ट्रोसैट अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में इसरो की ओर से विश्व को दिया गया एक ऐसा उपहार है, जो बेहद मेहनत के साथ जुटाया गया है. इस अभियान के साथ इसरो व्यवसायिक प्रक्षेपणों में 50 साल पूरे कर चुका है. हम पीएसएलवी सी29 के एक अन्य व्यवसायिक अभियान की तैयारी कर रहे हैं, जिसमें सिंगापुर के छह उपग्रह होंगे. हम सभी को इस बात पर गर्व होना चाहिए कि पीएसएलवी ने अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष बाजार में अपनी अहम मौजूदगी दर्ज कराई है. पीएसएलवी की लगातार 30वीं सफलता की की प्रशंसा की कहा कि यह देश के हर नागरिक के लिए गौरवपूर्ण क्षण है. पहले ही प्रयास में चांद और मंगल पर पहुंचकर देश इतिहास रचने वाला भारत अब अंतरिक्ष में दूरदर्शी स्थापित कर विश्व के चुनिंदा देशों के विशिष्ट क्लब में शामिल हो गया है.

इसरो ने कहा कि विश्व के सबसे विश्वसनीय प्रक्षेपण वाहनों में से एक इस रॉकेट ने आज अपने 30वें सफल अभियान को अंजाम दिया. यह अपने साथ अमेरिका के सन फ्रांसिस्को की कंपनी स्पायर ग्लोबल इंक के चार नैनो उपग्रह 'एलईएमयूआर' भी ले गया है. ये रिमोट सेंसिंग उपग्रह हैं, जिनका प्रमुख उद्देश्य जलयानों पर नजर रखते हुए एआईएस के जरिए समुद्री खुफिया जानकारी जुटाना है.

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