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11 April 2016
इकलौते नीली आँख वाले बाघ की मौत
उमरिया: बांधवगढ़ नेशनल पार्क में विश्व प्रसिद्ध नीली आँख वाले बाघ की रविवार को संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई. बाघ के ऊपर चोट के निशान पाए गए. यह प्रदेश में 17वें बाघ की मौत मानी जा रही है. शनिवार को ही वन विभाग के दो अफसरों पर इसी बाघ ने हमला बोल दिया था. इस घटना में दोनों अफसर गंभीर रूप से घायल हो गए, जिनका अस्पताल में इलाज जारी है. फील्ड डायरेक्टर के रमन का दावा है कि ब्लू आई टाइगर की गर्दन, आंखों के ऊपर तथा कंधे पर चोट के कई निशान मिले हैं.
वन विभाग को जिले के धामोखर इलाके के गांव में ब्लू आई बाघ के मूवमेंट की सूचना मिली थी. ग्रामीण लोग इस दुर्लभ नीली आंखों वाले बाघ पर हमला न कर दें, इसलिए डिप्टी डायरेक्टर कैलाश बांगर, रेजेर बीके भल्लावी तथा टीम जिप्सी से मौके पर पहुंचे. बाघ की तलाश के दौरान जब अफसरों की टीम परसजहा टोला पर पहुंची, तभी अचानक बाघ सामने आ गया और उसने हमला कर दिया. उसका पंजा डिप्टी डायरेक्टर को लगा, जबकि रेंजर वाहन से गिर गए. इस दौरान वाहन के चालक प्रेमला बैगा ने लाठी की आवाज से बाघ को वहां से बमुश्किल भगाया और घायलों को तत्काल वाहन में लेकर अस्पताल पहुंचा. हमले में बाघ का पंजे लगने के कारण डिप्टी डायरेक्टर कैलाश बांगर के शरीर में घाव हो गए हैं. वहीं, वाहन से गिरने के कारण रेंजर बीके भल्लावी के हाथ की हड्डी टूट गई है. इस हमले के 15 घंटे बाद ही बाघ की मौत हो गई.
बांधवगढ़ नेशनल पार्क में देश के इकलौते नीली आंखों वाले बाघ की संदिग्ध मौत पर सवाल खड़े होने लगे हैं. आरोप है कि कमजोर हो चुके इस बाघ को बेहोशी की दवा दी जा रही थी. इस बाघ को ट्रेक्वलाइज किया जा रहा था. इसी दौरान उसे दवाई का ओवरडोज दे दिया गया और जिससे बाघ की मौत हो गई. ओवरडोज होने से बेहोशी में ही उसकी मौत हो गई.
वहीं, वन विभाग के आला अफसरों की मानें तो अन्य बाघों से लड़ाई में नीली आंखों वाले टाइगर के गले और पीठ में चोट लग गई थी, इस वजह से वह शिकार नहीं कर पाया और भूख से मर गया. इसमें किसी की लापरवाही नहीं है.
नीली आंखों के चलते यह बाघ विश्वभर में प्रसिद्ध था. आमतौर पर सफेद बाघ के जिंस में ही यह मिलता है कि आंखें ब्लू जैसी दिखाई दें, लेकिन बांधवगढ़ के इस टाइगर की आंखें भी ब्लू जैसी ही दिखाई देती थी. बांधवगढ़ नेशनल पार्क में आने वाले दुनिया भर के सैलानियों को इस ब्लू आई टाइगर के दीदार का जरूर इंतजार रहता था. 12 वर्षीय यह बाघ कोर एरिया के बजाए बफर जोन में घूमकर मवेशियों का शिकार करता था. इसी वजह से यह बाघ ज्यादा ग्रामीणों और पर्यटकों को रोज दिखता था.