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2 December 2016

सिनेमा में जरूरी हुआ राष्ट्रगान: सुप्रीम कोर्ट

सिनेमा में जरूरी हुआ राष्ट्रगान

भोपाल: देश के सिनेमाघरों में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान और इस दौरान मौजूद हर इंसान को खड़े रहने का सुप्रीम कोर्ट ने आदेश जारी किया. जब राष्ट्रगान बजाया जा रहा हो उस समय पर्दे पर राष्ट्रध्वज दिखाया जाना चाहिए. अदालती आदेश के अनुसार देशभर के सिनेमाघरों में शो शुरू होने से पहले राष्ट्रगान का प्रदर्शन जरूरी है और इस दौरान मौजूद सभी दर्शकों का खड़े रहना बाध्यकारी होगा. इस आदेश का क्रियान्वयन कानून के रक्षकों की जिम्मेदारी है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से एक सप्ताह के भीतर आदेश लागू कराने और सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को इस बारे में जानकारी देने को कहा है.

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को यह फैसला भोपाल के रहने वाले श्याम नारायण चौकसे की जनहित याचिका पर दिया है. याचिका कर्ता श्याम नारायण चौकसे ने अपनी याचिका में कहा था कि राष्ट्रगान का व्यावसायिक प्रयोग रूकना चाहिए. कोर्ट ने इसे देशभर के सिनेमाघरों के लिए अनिवार्य कर दिया है.

अदालत ने कहा कि, 'यह किसी भी नागरिक का मौलिक कर्तव्य है कि वह संविधान में प्रदत्त सिद्धांतों का पालन करेगा. राष्ट्रगान और राष्ट्रध्वज के प्रति सम्मान प्रदर्शित करना इन्हीं कर्तव्यों में से है'. अदालत ने नागरिकों के मौलिक दायित्वों के संदर्भ में संविधान के अनुच्छेद 51-ए का हवाला दिया है, जो कहता है कि 'यह भारत के हर नागरिक का कर्तव्य होगा कि वह संविधान व इसके सिद्धांतों-संस्थाओं, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करेगा'. कोर्ट ने सख्त हिदायत दी है कि सिनेमा में ड्रामा पैदा करने के लिए राष्ट्रगान का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए.

इससे पहले भी 1999 में भारत सरकार बनाम मोशन पिक्चर्स एसोसिएशन के मामले में भी सर्वोच्च न्यायालय ने सिनेमाघरों में शैक्षणिक, वैज्ञानिक या ताजा घटनाक्रमों पर डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का प्रदर्शन अनिवार्य बताया था. इसी वर्ष 20 अक्तूबर को गोवा में व्हीलचेयर पर सिनेमा देख रहे एक व्यक्ति को कुछ लोगों ने इसलिए पीट दिया था कि वह राष्ट्रगान के सम्मान में खड़ा नहीं हुआ. 2014 में मुंबई में एक विदेशी महिला के साथ भी ऐसी ही अभद्रता की बात थाने तक पहुंची थी, जब वह सिनेमाघर में राष्ट्रगान के दौरान खड़ी नहीं हुई थी. 2015 में उस वक्त भी विवाद हुआ था, जब तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता के शपथ ग्रहण समारोह में राष्ट्रगान को संक्षिप्त करके प्रस्तुत किया गया. आधिकारिक रूप से राष्ट्रगान 52 सेकंड में पूरा करना जरूरी है. ऐसे कई मामले सामने आए थे जब राष्ट्रगान के लिए न खड़े होने पर लोगों को सिनेमा घर से बाहर करने या पिटाई करने की घटनाएं हुई थीं.

जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई वाली पीठ ने अपने आदेश में यह भी कहा कि राष्ट्रगान के दौरान सिनेमा हॉल के गेट बंद कर दिए जाएं, ताकि कोई इसमें खलल न डाल पाये. राष्ट्रगान पूरा होने पर ही गेट खोले जायें. पीठ ने कहा कि यह देश के हर नागरिक का कर्तव्य है कि वह राष्ट्रगान और राष्ट्रीय ध्वज के प्रति सम्मान दर्शाए. राष्ट्रगान के नियमों के मूल में राष्ट्रीय पहचान, अखंडता और संवैधानिक राष्ट्रभक्ति है. शास्त्रों में भी राष्ट्रवाद को स्वीकार किया गया है. समय आ गया है कि लोग यह महसूस करें कि वे एक राष्ट्र में रहते हैं.

साल 1960 के दशक में देश के सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान बजाने की शुरुआत हुई थी. ऐसा सैनिकों के सम्मान और लोगों में राष्ट्र प्रेम की भावना जगाने के लिए होता था. हालांकि, बाद में शिकायतें हुईं कि सिनेमा हॉल में राष्ट्रगान का अपमान होता है. इस पर सरकार ने इसे बंद करवा दिया था. 2003 में महाराष्ट्र सरकार ने नियम बनाया कि सिनेमा हॉल में फिल्म से पहले राष्ट्रगान बजाना और इस दौरान लोगों का खड़े रहना अनिवार्य है. किसी शो में ड्रामा क्रिएट करने के लिए राष्ट्रगान की आधी अधूरी धुन का प्रयोग किया जाना बंद होना चाहिए. भारतीय संविधान में 1971 में शामिल हुए कानून के मुताबिक राष्ट्रगान का व्यावसायिक प्रयोग करना या किसी भी रूप में आधा अधूरा बजाना अपराध की श्रेणी में आता है.

करीब 15 वर्ष पहले तक सिनेमा घरों में फिल्म के अंत में राष्ट्रगान चलाया जाता था. लेकिन दर्शकों द्वारा राष्ट्रगान के सम्मान का ध्यान न रखे जाने के चलते धीरे—धीरे इसे बंद कर दिया गया. हालांकि महाराष्ट्र वर्तमान में देश का अकेला ऐसा राज्य है जहां सिनेमा घरों में फिल्म से पहले राष्ट्रगान चलाया जाता है.

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