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22 August 2017

तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला तलाक बंद

तीन तलाक पर कोर्ट रोक

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक पर मंगलवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाया. पांच जजों की संवैधानिक पीठ में से तीन ने इसे असंवैधानिक करार दिया. तीन जस्टिसो ने नजीर और सीजेआई खेहर की राय का विरोध किया. तीन तलाक कोर्ट में 3-2 से खारिज हुआ. फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने 1000 साल पुराने तीन तलाक को खारिज किया है. चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने इसके लिए केंद्र सरकार को छह महीने का समय दिया. जिन महिलाओं ने इसके खिलाफ याचिका डाली हुई थी उन्होंने फैसला का स्वागत किया.

16 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इन मुद्दों की सुनवाई के लिए पांच जजों की बेंच का गठन किया था.

छह महीने तक के लिए कोर्ट अनुच्छेद 142 के तहत विशेष शक्तियों का प्रयोग करते हुए तीन तलाक पर तत्काल रोक लगाती है. इस अवधि में देशभर में कहीं भी तीन तलाक मान्य नहीं होगा. फैसले के वक्त कोर्ट रूम नंबर 1 पूरी तरह खचाखच भरा रहा. कोर्ट रूम के बाहर वकीलों और पत्रकारों की भीड़ मौजूद थी. अमूमन फैसला सुनाए जाते वक्त कोर्टरूम के दरवाजे बंद होते हैं. लेकिन इस फैसले में कोर्ट के दरवाजे खुले रहे.

जस्टिस यूयू ललित(हिंदू), जस्टिस फली नरीमन(पारसी), जस्टिस जोसेफ कुरियन(ईसाई) ने तीन तलाक को असंवैधानिक बताते हुए कहा इससे मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन होता है. जबकि इससे पहले चीफ जस्टिस जेएस खेहर(सिख) ने कहा कि तीन तलाक धार्मिक प्रक्रिया और भावनाओं से जुड़ा मामला है, इसलिए इसे एकदम से खारिज नहीं किया जा सकता. यह एक महत्वपूर्ण मसला है इसलिए सरकार और संसद को इसमें बदलाव की पहल करनी चाहिए. निर्णायक पीठ में जस्टिस अब्दुल नज़ीर(मुस्लिम) भी शामिल थे.

फैसले में कोर्ट ने मुस्लिम देशों में ट्रिपल तलाक पर लगे बैन का जिक्र किया और पूछा कि भारत इससे आजाद क्यों नहीं हो सकता. चीफ जस्टिस के मुताबिक, यह प्रथा सुन्नी समुदाय का अभिन्न हिस्सा है और यह प्रथा 1000 सालों से चली आ रही है. खेहर ने यह भी कहा कि सभी पार्टियों को राजनीति को अलग रखकर इस मामले पर फैसला लेना चाहिए.

चीफ जस्टिस जेएस खेहर की अगुआई वाले 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने 11 मई से 18 मई तक सुनवाई के बाद इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था. रोचक बात यह है कि इस केस की सुनवाई करने वाले पांचों जज अलग-अलग समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं.

इस मामले की शुरुआत उत्तराखंड के काशीपुर की शायरा बानो ने पिछले साल सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर कर ट्रिपल तलाक और निकाह हलाला के चलन की संवैधानिकता को चुनौती दी थी. साथ ही, मुस्लिमों में प्रचलित बहुविवाह प्रथा को भी चुनौती दी थी. शायरा ने मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत महिलाओं के साथ लैंगिक भेदभाव के मुद्दे, एकतरफा तलाक और संविधान में गारंटी के बावजूद पहली शादी के रहते हुए शौहर के दूसरी शादी करने के मुद्दे पर विचार करने को कहा. अर्जी में कहा गया है कि तीन तलाक संविधान के अनुच्छेद 14 व 15 के तहत मिले मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.

शायरा बानो की याचिका के बाद, इस मुद्दे पर एक के बाद एक कई अन्य याचिकाएं दायर की गईं. एक मामले में सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच ने भी खुद संज्ञान लेते हुए चीफ जस्टिस से आग्रह किया था कि वह स्पेशल बेंच का गठन करें, ताकि भेदभाव की शिकार मुस्लिम महिलाओं के मामलों को देखा जा सके. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के अटॉर्नी जनरल और नैशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी को जवाब दाखिल करने को कहा था.

वहीं इस फैसले पर, ऑल इंडिया मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से दलील दी गई कि 3 तलाक इस्लाम का मूल हिस्सा नहीं है. बोर्ड ने बताया कि कुरान में तीन तलाक का कहीं भी जिक्र नहीं है. वरिष्ठ मौलाना सैयद शहराबुद्दीन सलाफी फिरदौसी ने तीन तलाक और हलाला को गैर इस्लामी बताते हुए इसे महिलाओं पर अत्याचार का हथियार बताया था. ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड(एआईएसपीएलबी) ने तीन तलाक के मामले में कड़े कानून की पैरवी की थी. एआईएसपीएलबी के प्रवक्ता मौलाना यासबू अब्बास ने कहा था कि शिया समुदाय में एक बार में तीन तलाक के लिए कोई जगह नहीं है. बोहरा विद्वान इरफान इंजीनियर का कहना था कि तीन तलाक गैर इस्लामी है. शिया समुदाय के नेता सलीम रिजवी ने कहा था, हम तीन तलाक में यकीन नहीं करते और शिया समुदाय में इस पर अमल नहीं होता. वहीं, वरिष्ठ पत्रकार असद रजा का कहना था कि यह मुद्दा पुरूषवादी वर्चस्व से जुड़ा है और इसका कुरआन में कोई जिक्र नहीं है. वहीं, ऑल इंडिया मुस्लिम वुमन्स पर्सनल लॉ बोर्ड की प्रेसिडेंट शाइस्ता अंबर ने तीन तलाक को गैर-कानूनी करार देते सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर खुशी जाहिर की है.

इस ऐतिहासिक फैसले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर फैसले का स्वागत किया. केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर खुशी जताई. फैसला आने के बाद देशभर में मुस्लिम महिलाएं काफी खुश है.

तीन तलाक़ यह मुसलमानों से जुड़ी एक विवादित प्रथा है. तीन तलाक शरिया का नियम है. जिसमें पुरुष को तीन बार महज तलाक कहने भर से शादी ख़त्म होने का अधिकार मिलता है. निकाह हलाला यानी पहले शौहर के पास लौटने के लिए अपनाई जाने वाली एक प्रॉसेस. इसके तहत महिला को अपने पहले पति के पास लौटने से पहले किसी और से शादी करनी होती है और उसे तलाक देना होता है.

पाकिस्तान समेत दुनिया के 22 मुसलमान मुल्को में ट्रिपल तलाक बैन है.

पहले हिंदुओं में भी बहुविवाह प्रथा थी. 1956 में कानून में बदलाव कर हिंदू विवाह कानून के तहत एक विवाह का नियम बनाया गया.

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