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21 October 2018
आजाद हिंद सरकार 75वी जयंती पर पीएम ने फ़हराया तिरंगा
नई दिल्ली: पीएम मोदी ने रविवार को सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व वाली 'आजाद हिंद सरकार' की 75वीं जयंती के मौके पर लाल किले की प्राचीर से तिरंगा झंडा फहराया. पीएम ने तिरंगा फहराकर एक नया इतिहास रचा. इस कार्यक्रम के मद्देनजर लाल किला के आसपास सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किये गए. सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में आजाद हिंद सरकार का गठन 21 अक्टूबर 1943 को किया गया था. आजाद हिंद सरकार ने देश से बाहर अंग्रेज हुकूमत के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी. इसका नेतृत्व सुभाष चंद्र बोस कर रहे थे. जर्मनी से एक 'यू बॉट' से दक्षिण एशिया आए, फिर वहां से जापान गये. जापान से वें सिंगापुर आये जहां आजा़द हिन्द की अस्थाई सरकार की नींव रखी गयी. 11 देशों की सरकारों ने भी आजाद हिंद सरकार को मान्यता दी थी. इसके अलावा आजाद हिंद फौज ने बर्मा की सीमा पर अंग्रेजों के खिलाफ जोरदार लड़ाई लड़ी थी.
बता दें कि अब तक देश के प्रधानमंत्री सिर्फ 15 अगस्त को ही लाल किले पर झंडारोहण करते हैं. मगर अब 21 अक्टूबर को भी लाल किले पर झंडारोहण करने करने के साथ नरेंद्र मोदी पहले प्रधानमंत्री बन गये. नेताजी की जयंती पर हर वर्ष पुरुस्कार देने की भी घोषणा की गई. नेताजी ने लालकिले पर विक्ट्री परेड का सपना देखा था. बोस की आजाद हिंद सरकार अविभाजित भारत की सरकार थी. सशस्त्र सेना में महिलाओं की भी बराबरी की भागीदारी हो, इसकी नींव भी नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने ही रखी थी.
प्रधानमंत्री ने एक अन्य कार्यक्रम में राष्ट्रीय पुलिस स्मारक देश को समर्पित किया. यहां पुलिस के योगदान को सराहते हुए वे भावुक हो गए. उनकी आंखों से आंसू छलक पड़े.
लाल किले से पीएम मोदी ने कहा कि नेताजी का एक ही उद्देश्य था, एक ही मिशन था भारत की आजादी. यही उनकी विचारधारा थी और यही उनका कर्मक्षेत्र था. देश को अभी नई ऊंचाइयों पर पहुंचना बाकी है. इसी लक्ष्य को पाने के लिए आज भारत के 130 करोड़ लोग नए भारत के संकल्प के साथ आगे बढ़ रहे हैं. एक ऐसा नया भारत, जिसकी कल्पना सुभाष बाबू ने भी की थी. ये बड़ा दुखद है कि एक परिवार को बड़ा बताने के लिए, देश के अनेक सपूतों, सरदार पटेल, बाबा साहेब आंबेडकर की तरह नेताजी के योगदान को भी भुलाने का प्रयास किया गया.
आजाद हिंद फौज के कमांडर की हैसियत से भारत की अस्थायी सरकार बनायी, जिसे जर्मनी, जापान, फिलीपीन्स, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड ने मान्यता दी थी. सुभाष चंद्र बोस(Subhas Chandra Bose) ने 1921 में प्रशासनिक सेवा की प्रतिष्ठित नौकरी छोड़कर देश की आजादी की लड़ाई में उतरे. उन्होंने आजाद हिंद फौज(Azad Hind Fauj) में भर्ती होने वाले नौजवानों को 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा'. का ओजपूर्ण नारा दिया. आजाद हिंद सरकार ने देश से बाहर अंग्रेज हुकूमत के खिलाफ लड़ाई लड़ी और देश की आजादी में एक अहम भूमिका निंभाई थी. आजाद हिंद सरकार की अपनी बैंक थी, जिसका नाम आजाद हिंद बैंक था. आजाद हिंद बैंक की स्थापना साल 1943 में हुई थी, इस बैंक के साथ दस देशों का समर्थन था. आजाद हिंद बैंक ने दस रुपये के सिक्के से लेकर एक लाख रुपये का नोट जारी किया था. एक लाख रुपये के नोट पर सुभाष चंद्र बोस की तस्वीर छपी थी. आजाद हिन्द फौज के लिए जारी हुए थे डाक टिकट.
नेताजी ने महात्मा गांधी के साथ रहकर देश में ही प्रयास किए. फिर उन्होंने सशस्त्र क्रांति का रास्ता चुना. इस रास्ते ने भारत की आजादी में बड़ी भूमिका निभाई. नेल्सन मंडेला ने भी कहा था कि दक्षिण अफ्रीका के छात्र आंदोलन के दौरान वे सुभाष बाबू को अपना नेता मानते थे.
इस कार्यक्रम में केंद्रीय संस्कृति मंत्री महेश शर्मा, नेताजी सुभाष चंद्रबोस के परिवार के लोग भी इसमें शामिल हुए.