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07 September 2018
सहमति से बने समलैंगिक संबंध अब अपराध श्रेणी से बाहर
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को ऐतिहासिक फैसला दिया. धारा 377 को आंशिक रूप से समाप्त किया. समलैंगिकता को अपराध मानने से इंकार किया. समलैंगिकता को अवैध बताने वाली IPC की धारा 377 की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट ने यह अहम फैसला सुनाया. मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों(दीपक मिश्रा, जस्टिस रोहिंटन नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा) की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से यह फैसला सुनाया. कहा समलैंगिक संबंध अब से अपराध नहीं हैं. सहमति से दो वयस्कों के बीच बने समलैंगिक यौन संबंध अब अपराध की श्रेणी में नहीं आयेंगे.
कोर्ट ने कहा सहमति से अप्राकृतिक यौन संबंध अपराध के दायरे में शामिल नहीं होंगा. अभी तक इस मामले में 10 साल या फिर जिंदगीभर जेल की गैर जमानती सजा का प्रावधान था. किसी जानवर के साथ भी यौन संबंध बनाने पर इस कानून के तहत उम्र कैद या 10 साल की सजा एवं जुर्माने का प्रावधान है. समलैंगिकता की इस श्रेणी को LGBTQ(लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर और क्वीयर) के नाम से भी जाना जाता है. इस श्रेणी के लोग काफी समय से इस धारा में बदलाव की मांग कर रहे थे. फैसले के बाद समूह ने जश्न मनाया.
देश में इस एक्ट की शुरुआत लॉर्ड मेकाले ने 1861 में इंडियन पैनल कोड(आईपीसी) ड्राफ्ट करते वक्त की थी. इसी ड्राफ्ट में धारा-377 के तहत समलैंगिक रिश्तों को अपराध की श्रेणी में रखा गया.
ब्रिटेन में 25 अक्टूबर, 1800 को जन्मे लॉर्ड मैकाले 1834 में गवर्नर-जनरल के एक्जीक्यूटिव काउंसिल के पहले कानूनी सदस्य नियुक्त होकर भारत आए थे. भारत में वह सुप्रीम काउंसिल में लॉ मेंबर और लॉ कमिशन के हेड बने. इस दौरान उन्होंने भारतीय कानून का ड्राफ्ट तैयार किया. इसी ड्राफ्ट में धारा-377 में समलैंगिक संबंधों को अपराध की कैटेगरी में डाला गया.
भारत से पहले इन देशों में समलैंगिकता अपराध नहीं? ऑस्ट्रेलिया, माल्टा, जर्मनी, फिनलैंड, कोलंबिया, आयरलैंड, अमेरिका, ग्रीनलैंड, स्कॉटलैंड, लक्जमबर्ग, इंग्लैंड और वेल्स, ब्राजील, फ्रांस, न्यूजीलैंड, उरुग्वे, डेनमार्क, अर्जेंटीना, पुर्तगाल, आइसलैंड, स्वीडन, नॉर्वे, दक्षिण अफ्रीका, स्पेन, कनाडा, बेल्जियम, नीदरलैंड जैसे 26 देशों ने समलैंगिक सेक्स को अपराध की श्रेणी से हटा दिया है.