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28 September 2018
सबरीमाला मंदिर में महिलाओ के प्रवेश पर लगी रोक समाप्त
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर पर शुक्रवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाया. महिलाओं के मंदिर प्रवेश को हरी झंडी दी. ये फैसला पांच जजों की पीठ ने किया. इनमे CJI दीपक मिश्रा, जस्टिस चंद्रचूड़, जस्टिस नरीमन, जस्टिस खानविलकर ने महिलाओं के पक्ष में एक मत से फैसला सुनाया. जबकि जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने सबरीमाला मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया.
करीब 800 साल पुराने इस मंदिर में ये मान्यता पिछले काफी समय से चल रही थी कि महिलाओं को मंदिर में प्रवेश ना करने दिया जाए. कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूडीएफ सरकार भी 10 से 50 आयु वर्ग की महिलाओं का प्रवेश वर्जित करने के पक्ष में है क्योंकि यह परपंरा अति प्राचीन काल से चली आ रही है.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सबरीमाला मंदिर की ओर से याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि वह इस पर रिव्यू पेटिशेन दायर करेंगे.
सुप्रीम कोर्ट का फैसला पढ़ते हुए चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि आस्था के नाम पर लिंगभेद नहीं किया जा सकता है. कानून और समाज का काम सभी को बराबरी से देखने का है. भगवान अयप्पा के भक्तों को अलग-अलग धर्मों में नहीं बांट सकते हैं.
जस्टिस नरीमन ने अपना फैसला पढ़ते हुए कहा कि महिलाओं को किसी भी स्तर से कमतर आंकना संविधान का उल्लंघन करना ही है.
जस्टिस मल्होत्रा ने कहा कि आस्था से जुड़े मामले को समाज को ही तय करना चाहिए ना की कोर्ट को.
इस मामले में केरल सरकार ने कोर्ट को सूचित किया था कि वह ऐतिहासिक सबरीमाला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश के पक्ष में है. कोर्ट ने साफ कहा है कि हर उम्र वर्ग की महिलाएं अब मंदिर में प्रवेश कर सकेंगी. हमारी संस्कृति में महिला का स्थान आदरणीय है. यहां महिलाओं को देवी की तरह पूजा जाता है.
गौरतलब है कि केरल के पत्थनमथिट्टा जिले के पश्चिमी घाट की पहाड़ी पर स्थित सबरीमाला मंदिर प्रबंधन ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि 10 से 50 वर्ष की आयु तक की महिलाओं के प्रवेश पर इसलिए प्रतिबंध लगाया गया है क्योंकि मासिक धर्म के समय वे शुद्धता नहीं बनाए रख सकतीं.