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18 February 2024

आचार्य श्री विद्यासागर ब्रह्मलीन, साधु-संतो में शोक लहर

आचार्य श्री विद्यासागर ब्रह्मालीन

राजनांदगांव: जैन संप्रदाय के सबसे विख्यात मुनि आचार्य विद्यासागरजी महाराज ने रविवार को सल्लेखना विधि के जरिए अपनी देह त्यागी. मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ सरकार ने आधे दिन का राजकीय शोक घोषित किया. जैनमुनि आचार्य विद्यासागर महाराज का छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ स्थित चंद्रगिरि तीर्थ में अंतिम संस्कार किया गया. इस मौके पर हजारों श्रद्धालु मौजूद थे. साधु-संतो में शोक की लहर छाई. पीएम मोदी ने उनके निधन पर शोक संवेदना जताई है.

आचार्य श्री विद्यासागर ब्रह्मालीन

मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव ने शोक व्यक्त करते हुए कहा कि आचार्य विद्यासागर जी का समाधि पूर्वक देह विलय जैन समाज के साथ ही राष्ट्र के लिए अपूरणीय क्षति है. आचार्य विद्यासागर जी ने सदमार्ग पर चलने की प्रेरणा दी है. आचार्य जी का मध्य प्रदेश के प्रति विशेष स्नेह रहा है. मध्य प्रदेश वासियों को उनका भरपूर आशीर्वाद मिला. उनके सद कार्य सदैव प्रेरित करते रहेंगे.

वहीं पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी शोक व्यक्त करते हुए कहा कि मेरे जीवन में आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का गहरा प्रभाव रहा, उनके जीवन का अधिकतर समय मध्य प्रदेश की भूमि में गुजरा और उनका मुझे भरपूर आशीर्वाद मिला. आचार्य श्री के सामने आते ही हृदय प्रेरणा से भर उठता था. उनका आशीर्वाद असीम शांति और अनंत ऊर्जा प्रदान करता था. उनका जीवन त्याग और प्रेम का उदाहरण है आचार्य श्री जीते जागते परमात्मा थे. उनका भौतिक शरीर हमारे बीच ना हो लेकिन गुरु के रूप में उनकी दिव्य उपस्थिति सदैव आस पास रहेगी.

आचार्य श्री का जन्म 10 अक्टूबर 1946 को कर्नाटक प्रांत के बेलगांव जिले के सदलगा गांव में में शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था. उन्होंने 30 जून 1968 को राजस्थान के अजमेर नगर में अपने गुरु आचार्यश्री ज्ञानसागर जी महाराज से मुनिदीक्षा ली थी. आचार्यश्री ज्ञानसागर जी महाराज ने उनकी कठोर तपस्या को देखते हुए 1972 में उन्हें अपना आचार्य पद सौंपा था. आचार्यश्री 1975 के आसपास बुंदेलखंड आए थे. उन्होंने अपना अधिकांश समय बुंदेलखंड में व्यतीत किया.

आचार्य विद्यासागर संस्कृत, प्राकृत सहित विभिन्न आधुनिक भाषाओं जैसे हिन्दी, मराठी और कन्नड़ में विशेषज्ञ स्तर का ज्ञान रखते थे. उन्होंने हिन्दी और संस्कृत के विशाल मात्रा में रचनाएं भी की हैं. 100 से अधिक शोधार्थियों ने उनके कार्य का मास्टर्स और डॉक्ट्रेट के लिए अध्ययन किया है. उनके कार्य में निरंजना शतक, भावना शतक, परीषह जाया शतक, सुनीति शतक और शरमाना शतक शामिल हैं. उन्होंने काव्य मूक माटी की भी रचना की है. विभिन्न संस्थानों में यह स्नातकोत्तर के हिन्दी पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता है.

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