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15 November 2015

हिंगोट युद्ध में घायल हुए पचास

हिंगोट युद्ध पचास घायल

इंदौर: दीपावली के दूसरे दिन इंदौर के नजदीक गौतमपुरा गांव में गुरुवार को पारंपरिक हिंगोट युद्ध का आयोजन किया गया. इसे देखने के लिए हजारों लोगों की भीड़ उमड़ी. गौतमपुरा और रूणजी क्षेत्रों की टीमों के योद्धाओं ने एक दूसरे पर ढेरों जलते हिंगोट फेंके. मैदान के भीतर दो दल युद्ध करने के लिए मौजूद थे, जिन्हें तुर्रा और कलंगी नाम दिया जाता है. युद्ध शुरू होने के कुछ ही देर में गौतमपुरा का आकाश आग के गोलों से भर गया. शाम ढलते ही मैदान में अग्निबाणों की वर्षा शुरू हो गई थी. मंदिर में दर्शन के बाद लड़ाई शुरु हुई और चारों तरफ सर्र-सर्र करते अग्निबाण बरसने लगे. कई लोगो के घायल होने के बाद भी परंपरा का रोमांच जारी रहा.

पारस्परिक अग्निक्रीडा में इस्तेमाल होने वाले हिंगोट हवा में ठीक वैसे ही चलते हैं, जैसे राकेट ऊंचाई पर जाते हैं. कभी गौतमपुरा की तुर्रा टीम भारी पड़ी तो कभी रूणजी के कलगी योद्धा हिंगोटों की मार से प्रतिद्वंद्वियों को खदेड़ा. जलते हुए घातक हिंगोटों से दर्शकों को बचाने के लिए प्रशासन ने सुरक्षा के लिए जालियां के इंतजामात किये थे.

क्रीडा स्थल पर दो सौ से अधिक जवानों की तैनाती थी, चार एम्बुलेंस भी लगाई गई थीं, चिकित्सकों के दल भी मैदान में मौजूद रहे. एक गंभीर रूप से घायल को उपचार के लिए इंदौर भेजा गया है. घायल होने वाले योद्धाओं की मदद करने के लिए प्रशासन ने 108 एम्बुलेंस तैनात कर रखी थीं.

युद्ध के दौरान कुछ योद्धा शराब पीकर लड़ने पहुंचे थे, जिन्‍हें पुलिस प्रशासन ने मैदान से बाहर कर दिया. प्रतियोगियों के दौरान हिस्सा ले रहे प्रतियोगी ढाल से अपनी सुरक्षा कर रहे थे और मौका मिलते ही हिंगोट से प्रहार भी कर रहे थे.

युद्ध में हमलों के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला हिंगोट एक खास फल से तैयार किया जाता है. हिंगोट नारियल जैसा होता है. इसका बाहरी आवरण कठोर और अंदर गूदा रहता है. इस फल की खासियत यह है कि यह केवल देपालपुर इलाके में ही होता है. हिंगोट को हथियार बनाने के लिए फल को अंदर से खोखला कर इसे सुखाया जाता है. सूखने के बाद इसके भीतर बारूद भरी जाती है. इसमें एक ओर लकड़ी लगा दी जाती है. युद्ध के दौरान जब इस फल के एक हिस्से में आग लगाई जाती है तो वह ठीक राकेट की तरह उड़ने लगता है.

देपालपुर में हर साल दिवाली के दूसरे दिन अग्नि युद्ध यानी हिंगोट युद्ध होता है. जानकारों के मुताबिक इसका चलन मुगलों के शासन के दौरान यानी लगभग दो सौ साल पहले हुआ था. वर्षों पुरानी परंपरा के चलते हर साल हिंगोट युद्ध लड़ा जाता है. इस युद्ध का मकसद सत्ता हासिल करना नहीं होता है बल्कि गौतमपुरा गांव के ये दो युद्ध समूह अपनी कई पीढ़ियों से चली आ रही परम्परा को कायम रखने के लिए युद्ध करते हैं.

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