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5 April 2016

सिंहस्थ महाकुंभ में हुई पहली पेशवाई

उज्जैन: प्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन में पंच दशनाम जूना अखाड़े की पेशवाई के साथ सिंहस्थ का आगाज हुआ. उज्जैन सिंहस्थ मेले की शुरूआत 22 अप्रैल से होने जा रही है. लेकिन मंगलवार से अखाड़ों की पेशवाई का सिलसिला शुरू हो गया. सीएम शिवराज सिंह आचार्य महामंडलेश्वर जूनापीठाधीश्वर अवधेशानंदजी के साथ रथ पर सवार हुए. यह कुंभ नगरी में संतों की पहली पेशवाई है. निरंजनी अखाड़े की पेशवाई चारधाम से निकलेगी. 1100 साल के बाद दशनामी जूना अखाड़े का ध्वजारोहण स्थल बदलेगा. मंगलवार सुबह आठ अखाड़ों ने नीलगंगा तालाब से पेशवाई की शुरुआत की. नीलगंगा से फ्रीगंज तक पेशवाई के स्वागत के लिए लोगों की भारी भीड़ उमड़ी.

पेशवाई में नागा सन्यासियों के पीछे अखाड़े के प्रमुख आचार्य महामंडलेश्वर जूनापीठाधीश्वर अवधेशानंदजी मयूर रथ पर सवार होकर निकले इस बीच सीएम शिवराज सिंह ने उनका स्वागत किया. इसके पहले परंपरा अनुसार संतों से खिचड़ी भोज किया. पेशवाई निकलने से पहले शहर में हल्की बूंदाबांदी हुई, जिससे फिजा में ठंडक घुल गई.

काशी सुमेरूपीठ के शंकराचार्य स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती, अखाड़ा परिषद अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी महाराज समेत सभी अखाड़ों के प्रमुख ने पेशवाई में हिस्सा लिया. पेशवाई में घुड़सवार, हाथी, बैंड, बग्घियां, धर्म ध्वजा और जूना अखाड़े के आराध्य भगवात दत्तात्रय की ध्वजा भी शामिल हुई. अखाड़े की भव्य पेशवाई में 20 लोगों का एक दल राजकीय पोशाक में शामिल हुआ. इनके पीछे नागा सन्यासियों का दल अपने अस्त्र-शस्त्रों का प्रदर्शन कर नाचते हुए आगे बढ़ा. मेला प्रशासन ने इस पहली पेशवाई को देखते हुए शहर के मार्गो को संजाया-संवारा है. क्षिप्रा(शिप्रा) नदी पर स्थित पुल-पुलियाओं पर भी आकर्षक साज-सज्जा की गई है. इन पर रंग-बिरंगे ध्वज लगाए गए हैं और रंगारंग रोशनी भी की गई है. महामंडलेशवर सहित बड़ी संख्या में साधु-संत शामिल हुए.

इस पहली पेशवाई में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह पत्नी साधना सिंह के साथ शामिल हुए. सीएम चौहान का निरंजनी अखाड़े में सम्मान किया गया. इस दौरान उन्होंने सिंहस्थ के लिए उज्जैन आए साधु-संतों का स्वागत किया. सीएम ने कहा कि ये मेरी जिंदगी का सबसे महत्वपूर्ण दिन है. उज्जैन में दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन हो रहा है. जिससे महाकाल नगरी के निवासी धन्य हो गए.

पेशवाई का मतलब पेशवा(राजा) के दरबार में पेश होना है. कालांतर में साधु-संत किसी भी नगर में प्रवेश करते थे तो वहां के राजा से अनुमति मांगते थे. अनुमति मिलने पर राजसी तरीके से नगर में प्रवेश करते थे. वर्तमान स्वरूप में पेशवाई के जरिए साधु-संत पूरी भव्यता के साथ कुंभ मेले में प्रवेश करते हैं.

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