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7 September 2017

निर्भीक-निडर पत्रकार गौरी लंकेश की गोली मारकर हत्या

पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या

बेंगलूरु: जानी-मानी वरिष्ठ कन्नड़ पत्रकार गौरी लंकेश की अज्ञात हमलावरों ने मंगलवार को गोली मारकर हत्या कर दी. हत्या की जांच के लिए एसआईटी की टीम गठित की गई है. शाम को गौरी जब अपने घर लौटी और दरवाज़ा खोल रही थीं. तब हमलावरों ने उनपर 7 राउंड फायरिंग की. मौके पर ही 55 वर्षीय गौरी लंकेश की मौत हो गई. उनको पहले भी जान से मारने की धमकियां मिल चुकी थीं. गौरी को हाल ही में बीजेपी और सांसद प्रहलाद जोशी से जुड़े एक मानहानि केस में दोषी ठहराया गया था.

एक पत्रकार के तौर पर गौरी लंकेश दक्षिणपंथी राजनीति को लेकर आलोचनात्मक रुख रखती थीं. गौरी ने साप्ताहिक लंकेश पत्रिका के जरिए 'कम्युनल हार्मनी फोरम' को काफी बढ़ावा दिया. लंकेश पत्रिका को उनके पिता ने शुरू किया था और इन दिनों वो इसका संचालन कर रही थीं. गौरी के पिता पी लंकेश एक पुरस्कार विजेता फिल्ममेकर थे, जिन्होंने 1980 में लंकेश पत्रिका शुरू की थी. गौरी अखबारों में कॉलम भी लिखती थीं. टीवी न्यूज चैनल डिबेट्स में भी वो एक्टिविस्ट के तौर पर शामिल होती थीं.

मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा, ये बेहद दुखद खबर है. गौरी पत्रकार, लेखक और विकासशील विचारों की थीं. उन्होंने हमेशा कट्टरपंथियों के खिलाफ आवाज़ उठाई थी. ये बेहद दुखद है कि उनकी हत्या कर दी गई. ये लोकतंत्र की हत्या है. गौरी की मौत से कर्नाटक ने एक विकासशील आवाज खोई है. मैंने एक दोस्त खोया है.

उनकी हत्या के बाद पूरे देश की मीडिया में उनकी हत्या की खबरें सुर्खियां बनी है. देश के अलग अलग शहरों में उनकी हत्या के विरोध में प्रदर्शन हो रहे हैं. दिल्ली में भी प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के साथ कई संगठनों ने विरोध प्रदर्शन आयोजित किया. देश के अधिकांश राजनीतिक दल के नेताओं ने इसकी निन्दा की. गौरी लंकेश पर हमले की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी आलोचना की है.

गौरी लंकेश के भाई इंद्रजीत लंकेश ने शक जताया था कि गौरी की हत्या में उन माओवादियों का हाथ हो सकता है जो गौरी से इसलिए ख़ुश नहीं थे क्योंकि वो कई माओवादियों को मुख्यधारा में वापस ले आई थीं. कइयों को मुख्यधारा में लाईं तो उन्हें नफ़रत भरे कई ई-मेल और संदेश मिले. हालांकि गौरी की बहन कविता लंकेश कहती हैं कि सिर्फ़ एक संभावना है कि जो लोग उनकी विचारधारा के विरोधी थे वो ही उनकी हत्या के पीछे का कारण हैं.

गौरतलब है की उनसे पहले पत्रकार जगत में डॉ. एमएम कलबुर्गी और डॉ पंसारे की हत्या भी हो चुकी है. 2013 में पुणे में नरेंद्र दाभोलकर को भी गोलियों से छलनी किया गया था.

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